Wednesday, 23 May 2012

Sai Baba Vrat Katha and Pooja Vidhi

SAI BABA AARTI IN HINDI

श्री साईं बाबा व्रत के नियम

१. ये व्रत कोई भी स्त्री पुरुष और बच्चे भी कर सकते है

२. ये व्रत कोई भी जाती-पति के भेद भावः बिना कोई भी व्यक्ति कर सकता है

३. ये व्रत बहुत ही चमत्कारिक है ९ गुरूवार विधिपूर्वक करने से निश्चित ही इच्छित फल की प्राप्ति होती है

४. ये व्रत कोई भी गुरूवार को साईं बाबा का नाम ले कर शुरू किया जा सकता

५. सुबह या शाम को साईं बाबा के फोटो की पूजा करना किसी आसन पर पीला कपडा बिछा कर उस पर साईं बाबा का फोटो रख कर स्वच्छ पानी से पोछ कर चंदन या कंकु का तिलक लगाना चाहिये और उन पर पीला फूल या हार चढाना चाहिये अगरबत्ती और दीपक जलाकर साईं व्रत की कथा पढ़ना चाहिये और साईं बाबा का स्मरण करना चाहिये और प्रसाद बाटना चाहिये (प्रसाद में कोईभी फलाहार या मिठाई बाटी जा सकती है)

६. यह व्रत फलाहार लेकर किया जा सकता है (जैसे दूध, चाय, फल, मिठाई आदि) लेकर अथवा एक समय भोजन करके किया जा सकता है बिलकुल भूखे रहकर उपवास न किया जाय

७. ९ गुरूवार को हो सके तो साईं बाबा के मंदिर जाकर दर्शन किए जाए साईं बाबा के मंदिर न जा पाये तो (नजदीक मंदिर न हो) तो घर पर ही श्रद्धापूर्वक साईं बाबा की पूजा की जा सकती है

८. बहार गाव जाना हो तो भी उस वक्त व्रत चालू रखा जा सकता है

९. व्रत के समय स्त्रियों को मासिक की समस्या आए अथवा किसी कारण से व्रत न हो पाये तो उस गुरूवार को ९ गुरूवार की गिनती में न लिया जाए और उस गुरूवार के बदले अन्य गुरूवार करके ९ वे गुरूवार किया जाए

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उद्यापन की विधि

१. ९ वे गुरूवार को उद्यापन करना चाहिए इसमें पांच गरीब को भोजन किया जाए (भोजन अपनी यथाशक्ति देना या करवाना)

२. साईं बाबा की महिमा एवं व्रत का फैलाव करने के लिए अपने सगे-सम्बन्धी या पडोसियों को यह किताबे ५, ११, २१ अपनी यथाशक्ति भेट दी जाए इस तरह व्रत का उद्यापन किया जाय

३. ९ वे गुरूवार को जो किताबे भेट देनी है उसका यथाशक्ति पूजा में रखिए और बाद में ही भेट दी जाए जिससे आपकी एवं अन्य व्यक्तियों की भी मनोकामना पूर्ण हो उपरोक्त विधि से व्रत करने से एवं विधिपूर्वक उद्यापन करने से निश्चित हो आपकी मनोकामना पूर्ण होगी ऐसा साईं भक्तो का विश्वास है

साईं व्रत कथा
कोकिला बहन और उनके पति महेशभाई शहर में रहते थे दोनों को एक-दुसरे के प्रति प्रेम-भाव था परन्तु महेशभाई का स्वाभाव झगडालू था बोलने की तमीज ही न थी आदोसी-पडोसी उनके स्वाभाव से परेशान थे, लेकिन कोकिला बहन बहुत ही धार्मिक स्त्री थी, भगवान पर विश्वास रखती एवं बिना कुछ कहे सब कुछ सह लेती धीरे-धीरे उनके पति का धंधा-रोजगार ठप हो गया कुछ भी कमाई नहीं होती थी महेशभाई अब दिन-भर घर पर ही रहते और अब उन्होंने गलत राह पकड़ ली अब उनका स्वभाव पहले से भी अधिक चिडचिडा हो गया

दोपहर का समय था एक वृद्ध महाराज दरवाजे पर आकार खड़े हो गए चेहरे पर गजब का तेज था और आकर उन्होंने दल-चावल की मांग की कोकिला बहन ने दल-चावल दिये और दोनों हाथों से उस वृद्ध बाबा को नमस्कार किया, वृद्ध ने कहा साईं सुखी रखे कोकिला बहन ने कहा महाराज सुख कीमत में नहीं है और अपने दुखी जीवन का वर्णन किया

महाराज ने श्री साईं के व्रत के बारे में बताया ९ गुरूवार (फलाहार) या एक समय भोजन करना, हो सके तो बेटा साईं मंदिर जाना, घर पर साईं बाबा की ९ गुरूवार पूजा करना, साईं व्रत करना और विधि से उद्यापन करना भूखे को भोजन देना, साईं व्रत की किताबे ५, ११, २१ यथाशक्ति लोगों को भेट देना और इस तरह साईं व्रतका फैलाव करना साईबाबा तेरी सभी मनोकामना पूर्ण करता है, लेकिन साईबाबा पर अटूट श्रद्धा रखना जरुरी है धीरज रखनी चाहिए जो उपरोक्त विधि से व्रत और उद्यापन करेगा साईबाबा उनकी मनोकामना जरुर पूर्ण करेंगे
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कोकिला बहन ने भी गुरुर्वार का व्रत लिया ९ वे गुरूवार को गरीबो को भोजन दिया सैव्रत की पुस्तके भेट दी उनके घर से झगडे दूर हुए घर में बहुत ही सुख शांति हो गई, जैसे महेशभाई का स्वाभाव ही बदल गया हो उनका धंधा-रोजगार फिर से चालू हो गया थोड़े समय में ही सुख समृधि बढ़ गई दोनों पति पत्नी सुखी जीवन बिताने लगे एक दिन कोकिला बहन के जेठ जेठानी सूरत से आए बातो बातो में उन्होंने बताया के उनके बच्चे पढाई नहीं करते परीक्षा में फ़ेल हो गए है कोकिला बहन ने ९ गुरूवार की महिमा बताई साईं बाबा के भक्ति से बच्चे अच्छी तरह अभ्यास कर पाएँगे लेकिन इसके लिए साईं बाबा पर विश्वास रखना ज़रूरी है साईं सबको सहायता करते है उनकी जेठानी ने व्रते की विधि बताने के लिए कहा कोकिला बहन ने कहा की ९ गुरूवार फलाहार करके अथवा एक समय भोजन करके यह व्रत किया जा सकता है और ९ गुरूवार तक हो सके तो साईं मंदिर के दर्शन के लिए जाने को कहा और यह कहा की

- यह व्रत स्त्री, पुरुष या बच्चे कोई भी कर सकते है ९ गुरूवार साईं फोटो की पूजा करना
- फूल चढाना, दीपक, अगरबत्ती अदि करना प्रसाद चढाना एवं साईं बाबा का स्मरण करना आरती करना अदि विधि बताई
- साईं व्रत कथा, साईं स्मरण, साईं चालीसा अदि का पात करना
- ९ वे गुरुवार को गरीबो को भोजन देना
- ९ वे गुरुवार यह साईं व्रत की किताबे अपने सगे-सम्बन्धी, अडोसी-पडोसी को भेट देना

सूरत से उनकी जेठानी का थोड़े दिनों में पत्र आया की उनके बच्चे साईं व्रत करने लगे है और बहुत अच्छे तरह से पढ़ते है उन्होंने भी व्रत किया था और व्रत की किताबे जेठ के ऑफिस में दे थी इस बारे में उन्होंने लिखा के उनके सहेली की बेटी शादी साईं व्रत करने से बहुत ही अच्छी जगह तै हो गई उनके पडोसी का गहेनो का डब्बा दम हो गया वह महीने के बाद गहनों का डिब्बा न जाने कोन वापस रख गया एसा अद्भुत चमत्कार हुआ था

कोकिला बहन ने साईं बाबा की महिमा महान है वह जान लिया था

हे साईं बाबा जैसे सभी लोगों पर प्रसन्न होते है, वैसे हम पर भी होना

Om Sai Ram, Om Sai Ram, Om Sai Ram

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Friday, 4 May 2012

Bhraspativar (Thursday) Vrat Katha (Story)

Once Lord Indra, surrounded by many gods, Rishis, Kinnaras and Gondharvas sat on his throne in a proud mood. As guru Bhraspati reached there all of them except Indra stood up to pay respect. India used to pay obedience to his guru regularly but he showed discourtesy at that time. Bhraspati felt bad and left his palace. As Bhraspati left the palace Lord Indra realised his mistake and repented over his action. He felt that all his luxurious possessions were due to his guru blessings. Guru anger will turn it to dust.

Indra decided to go to Bhraspati and tender apology for his action. It may pacify his anger. He went to Bhraspati. Bhraspati intuited that Indra was coming to his Ashram. He avoided meeting out of anger and disappeared immediately. Lord Indra returned home disappointed. A demon god Vrishvarsha, sensed this situation and went to his guru Shukracharya. He begged his gum permission to attack Indrapuri, the kingdom of Lord India in those circumstances. Shukracharya permitted him. The demon god surrounded Indrapuri and made a sudden attack. In the absence of Guru Bhraspati blessings the gods lost all battles one after the other.

After his defeat the gods went to Lord Brahma and related the whole story. He begged for safety and asked for some strategy. Lord Brahma said, You have not done good by disgracing Bhraspati. Anyway go to Vishwaroopa the learned son of Twashta. Request him to become your priest. His blessings can save you. They went to Twashta and sought his blessings. Twashta said, By becoming your priest I do not want to lessen my virtues. But you go to my son Vishwaroopa. He will oblige you by accepting your request for priesthood.

Once Lord Indra, surrounded by many gods, Rishis, Kinnaras and Gondharvas sat on his throne in a proud mood. As guru Bhraspati reached there all of them except Indra stood up to pay respect. India used to pay obedience to his guru regularly but he showed discourtesy at that time. Bhraspati felt bad and left his palace. As Bhraspati left the palace Lord Indra realised his mistake and repented over his action. He felt that all his luxurious possessions were due to his guru blessings. Guru anger will turn it to dust.
Indra decided to go to Bhraspati and tender apology for his action. It may pacify his anger. He went to Bhraspati. Bhraspati intuited that Indra was coming to his Ashram. He avoided meeting out of anger and disappeared immediately. Lord Indra returned home disappointed. A demon god Vrishvarsha, sensed this situation and went to his guru Shukracharya. He begged his gum permission to attack Indrapuri, the kingdom of Lord India in those circumstances. Shukracharya permitted him. The demon god surrounded Indrapuri and made a sudden attack. In the absence of Guru Bhraspati blessings the gods lost all battles one after the other.
After his defeat the gods went to Lord Brahma and related the whole story. He begged for safety and asked for some strategy. Lord Brahma said, You have not done good by disgracing Bhraspati. Anyway go to Vishwaroopa the learned son of Twashta. Request him to become your priest. His blessings can save you. They went to Twashta and sought his blessings. Twashta said, By becoming your priest I do not want to lessen my virtues. But you go to my son Vishwaroopa. He will oblige you by accepting your request for priesthood.

All the gods went to Vishwaroopa and requested him to become their family priest for performing Yajna. He accepted their request. By Vishwaroopa grace demon Vrishvarsha was defeated and Lord India regained his kingdom. Lord India was happy. He implored Vishwaroopa to perform a special yajna for further gains. Vishwaroopa agreed. Vishwaroopa had three mouths. With one mouth he sucked the juice of Sompalli a special creeper. From the second mouth he used to drink wine. He used his third mouth for eating meals.

Vishwaroopa started performing Yajna. The demon gods were frightened. They thought a plan to undo the Yajna effects. One of the demon god went to Vishwaroopa and implored, Honourable Sir, do you know that you belong to demon genealogy from your mother side. Your mother is the daughter of a demon god. While performing Yajna kindly make some offerings in the names of demon gods for their happiness. Vishwaroopa agreed to his request. He made some silent offerings to demon gods so that no one may hear it. The result was that the Yajna advantages were divided between dieties and demon gods.

When Lord Indra came to know the treachery he beheaded Vishwaroopa in a state of extreme anger. One of his mouth from which he took wine, turned into a black bee. The second which he used for sucking Sompalli juice became a piglion while the third one used for taking meals was transformed into a partridge.
Lord Indras body was immediately deformed due to sacrelige, the murder of a Brahman. All the gods made repentance for one year but it had no effect on India. They approached Lord Brahma for seeking some remedy to redeem India from the sacrelige. Lord Brahma accompanied by Bhraspati went to Indra. He decided the sacrelige act into four parts.
The first part was given to the earth. As a result the earth became uneven. Some of its portion became barren. But as a boon he said that the earth would develop power to fill the khuds automatically.

The second part of the sacrelige was given to the trees and as a result they began to ooze gum. But as a boon he said that the gum of guggul - bdellium olibanum - will be treated pure and they would have the power to rebud from their roots though their upper portion may be dried up.
The third part of the sacrelige was given to the woman folk and so they experience menstruation. As a boon he blessed them to the pure or chaste on the fourth day and capable to give birth to children.

The fourth portion. of the sacrelige was given to water. As a result it is covered with aquatic plant or Shaivaal. As a boon the object in which it is added gains weight.
In this way Lord Brahma freed Indra from the heinous crime by dividing it into four places. Who so ever reads or listens this story is blessed by Bhraspati.

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